पीड़ा धरती मां की( कोरो ना आधारित)
भारत माता, स्वप्न में आई,
आकर के मुझसे बोली।
सोई नहीं हूं मैं तो तनिक भी ,
तू कैसे? ऐसे सो ली ।
किसने किया यह कृत्य घिनौना,
किसने बदरंग किया चित्र को ,
किसने भंग किया स्वप्न सलोना,
किसने फैलाया कोरोना इत्र को।
किसने साजिश की है मुझसे,
अब तो इसकी हद हो ली।
सोई नहीं हूं मैं तो तनिक भी,
तू ,कैसे ?ऐसे सो ली।
जाति -धर्म और राजनीति पर ,
बाद में बातें कर लेंगे।
अपना -पराया , धन -दौलत पर,
बाद में सारे लड़ लेंगे।
पहले मानवता को समझो,
जहर की क्यों? फसलें बो ली।
सोई नहीं हूं मैं तो तनिक भी ,
तू ,कैसे? ऐसे सो ली।
मैंने कभी क्या कोई भेद,
किया है तुम संतानों में।
अपनी सब सौगातें बांटी ,
निस्वार्थ ही सब इंसानों में।
फिर काहे यूं अंधे हो कर ,
मौत की अब गठरी खोली।
सोई नहीं हूं मैं तो तनिक भी,
तू, कैसे ? ऐसे सो ली।
बहुत हुआ अब तेरा मेरा बाते
घुमा फिरा करना।
जाग जाओ ए राजदुलारे !
कल पछताओगे वरना।।
बंद करो यह दीन- धर्म की
बातें यूं खुलकर करना।
सर्वोपरि है देश, मानवता ,
प्रशासन की सारी हिदायत ,
सामाजिक दूरी रखना ।
रेखा! मुश्किल दौर है धीरज रखना
मुझसे यूं धरती मां रोकर बोली।