पिया मिलन की प्यास, वर्षाऋतु और जगाती है
तन मन की हुई तपन शांत, मेघों ने अमृत बरसाया
धरती ने ओढ़ी हरी चुनरिया, जन जन का मन हर्षाया
दादुर मोर पपीहा बोले, प्रीतम भेद दिलों का खोले
प्रेमामृत प्रिया का पीने, भीगा तन अंतर्मन डोले
सांझ सुहानी भीगा मौसम, प्रेमाग्नि भड़काता है
सप्त स्वरों में गीत प्रेम के, बादल राग सुनाता है
अंधियारी रातों में गर्जन, जब मेघों की होती है
बिजली रानी चमक चमक, अपना आपा खोती है
पिया मिलन की प्यास, मेरा तन मन और जलाती है
जैसे गर्म तवे पर, ठंडी फुहार पड़ जाती है
पिया मिलन की प्यास, बर्षाऋतु और जगाती है