पितृ स्वरूपा,हे विधाता..!
पितृ स्वरूपा,हे विधाता..!
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व्योम उर सा अनंत विस्तृत,स्नेह का साम्राज्य तेरा ,
आये थे हम,तेरी कृपा से ,पर ये तो है सौभाग्य मेरा।
स्वप्न चुन-चुन, द्रव्य गिन-गिन,हसरतें बनाते प्रतिदिन,
कण-कण अवगाहन करके,लिख गए तू भविष्य मेरा।
पितृ स्वरुपा,हे विधाता !हम सब का है तू पालनहारा ,
मंद-मंद,पल-पल प्रवाहित, है धरा पर आशीष तेरा।
सहज सुंदर सौम्य निर्मल,सुरभि सरिता पुनीत धारा,
कण-कण अवगाहन करके,लिख गए तू भविष्य मेरा।
धैर्य अनुपम,दृष्टि विहंगम,स्पर्श से छटे गम का घनेरा ,
मन स्पंदित होता था जब,मिलता रहा बस साथ तेरा ।
हे गगन के द्युतिअलौकिक,रब भी नहीं तुझ सा चितेरा,
कण-कण अवगाहन करके,लिख गए तू भविष्य मेरा।
कारवाँ अब कौन लाए,अनगिनत उम्मीदों का सबेरा ,
होता नहीं अश्रांत मन अब,मिटता नहीं क्यूँ तमस घेरा।
खुल रहें हैं भेद ज्यों-ज्यों, खल रहा अब बिछोह तेरा ,
कण-कण अवगाहन करके,लिख गए तू भविष्य मेरा।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )