पिता की अभिलाषा
पिता की अभिलाषा
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शिकायत नहीं जग से मुझको ,
बस तेरे खुशी को ही तो जीता हूँ ।
तुझे स्नेह भरा अमिय सागर देकर मैं ,
युगों-युगों से हलाहल पीता हूँ ।
तुम रहो सदा खुशहाल वतन को ,
इसलिए मैं कुछ-कुछ आहें भरता हूँ ।
तुम जियो हजारों साल प्रिय सुत ,
ख़्वाबों में बस,तेरे ही सपने संजोता हूँ।
होठों पर तेरा, रहे मुस्कान सदा जो ,
इसलिए परेशान मैं, कुछ कुछ रहता हूँ ।
होता नहीं कोई थकान मुझे तब ,
जब स्वच्छंद उड़ान करता,मैं तुझे पाता हूँ ।
प्रबल धार नैया, डगमग न हो जाए ,
इसलिए पतवार मैं थामें रहता हूँ ।
साहिल पर तुझे लाना,कर्तव्य मेरा है ,
पग-पग बाधाओं से नहीं डरता हूँ ।
श्रद्धांजलि बनने को,मेरा तन जब ,
मृत्युशैय्या पर लेटा,तुझे स्मरण करे ।
दौड़े चले आना, कहीं रहो पुत्र तुम ,
अंतिम स्नेह सुमन,पिता अर्पण जो करे।
मौलिक एवं स्वरचित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ०५ /०५ /२०२२