“पिता”
चुभ रहे जूते में वो मीलों चले जाते
रातों में अक्सर वो वापस देर से आते
करके मेहनत जो कमाते घर वो ले आते
दर्द अपने वो नही बच्चों से कह पाते
वो पिता हैं जो हर एक दुख को है सह जाते
अपने बच्चों की ख़ुशी में वो है मुस्काते
खुद के सपने अपने दिल में खुद वो दफनाते
सब की ख़्वाहिश में उमर अपनी लगा जाते
हो ज़रूरत खुद की तो पूरी न कर पाते
बस,
चुभ रहे जूते में वो मीलों चले जाते
मीलों चले जाते