पिता
#पिता
मेरे घर मंदिर का देवता मेरा पिता है।
मेरे सफल जीवन का भाग्य विधाता हैं।
जल जैसा पसीना बहाकर खेत में।
कडी धूप में दिनभर बाप जलता है।
घर के अनगिनत काम करके।
बड़ी मुश्किल से घर चूल्हा जलता है।।
हर इन्सान की ये जिम्मेदारी होती है…
कितनो की जिंदगी का ये रुप होता है…
धूप में बाप जलता है और चूल्हे पर मां तपती है।
तब जाकर परिवार चलता है।
माँ चूल्हे पर पहले हात शेकती हैं।
तब बच्चों को खाना मिलता है।।
हर इन्सान की ये जिम्मेदारी होती है…
कितनो की जिंदगी का ये रुप होता है…
गरीबी में परवरिश मुश्किल होती हैं।
माँ बाप खून पसीना एक करता है।
सुबह बितते ही रात की फिकर होती हैं।
ये सवाल उन्हें रोज होता है।।
कितनो की जिंदगी का ये रुप होता है…
लाडले को सर्दी भी हुई तो।
माँ का प्राण डग मग हो जाता है।
बाप निशब्द होकर होश उडते है।
जल्दी से जाकर डॉक्टर लाता है।।
कितनो की जिंदगी का ये रुप होता है…
दिन रात काम करके बच्चे पढाते है।
दाखले के लिए बाप बहुत फिरता है।
तब जाकर बच्चे अच्छा पढते हैं।
माँ को थोड़ा सुकून मिलता है।।
कितनो की जिंदगी का ये रुप होता है…
हर पल हर वक्त परिवार का सोचते हैं।
खुद के लिए वक्त नहीं होता है।
जीवन भर की जो भी कमाई है।
कम भी पडे बाप कर्ज लेता है।।
हर इन्सान की ये जिम्मेदारी होती है…
कितनो की जिंदगी का ये रुप होता है…
माँ चूल्हे पर तपती हैं, बाप धूप में तपता हैं।
बच्चों का उज्ज्वल भविष्य सोचते है।
तब जाकर आने वाली हर स्थिति में घर चलता है।।
और वही बच्चे बड़े होकर जिम्मेदारी भूलते है।
जिन्होंने उंगली पकडकर चलना सिखाया।
यह सच है कुछ अपवाद पर यही होता है।।
कितनो की जिंदगी का ये रुप होता है…
कृष्णा वाघमारे, जालना, महाराष्ट्र.