पिता
बेफिक्र दुनिया में जिनके होते पिता।
उम्मीदों भरा साथ, रहने का ढंग देता पिता।
मेरे तन का माघ्यम पिता ।
संस्कार की ओज में मेरे जोश में मेरे पिता ।
रिश्तो के अनोखे मेल में ‘
मेरे भाई बहन के विचित्र मेल में’
मां का सुहाग सिंदूर है मेरे पिता ।
घर का रौनक है मेरे पिता ।
देता अनुभव संग सीख।
मेरी उम्र दराज पिता ।
पूरी दुनिया जीत जाए।
पर जब तक बच्चे जीत ना जाए ,
मुस्कान चेहरे ना लाते है पिता ।
इसलिए दुनिया में बच्चों भगवान है. इंसान रूपी पिता- डॉ सीमा कुमारी बिहार भागलपुर दिनांक 10-6-022की मौलिक स्वरचित रचना जिसे आज प्रकाशित कऱ रही हूं ये मेरी दूसरी रचना है। प्लीज न्याय के साथ खुशी की जीत हो यही कामना हैं।