पिता
पिता हर घाव की औषधि, पिता हर कष्ट में साथी ।
पिता तहजीब की मूरत, पिता आदर्श की पाती ।।
पिता पुरुषार्थ का सूचक, दिया संबल मुझे हरपल ।
छिपाकर पीर अन्तस में, पिता खुशियाँ भरे प्रतिपल ।।
पिता संगम विचारों का, पिता तपभूमि धर्मों की ।
पिता के पास बैठा जब, मिली है सीख कर्मों की ।।
बताई सत्य की राहें, निडर होकर सदा चलना ।
सिखाया सार जीवन का, विकारों से सदा लड़ना ।।
पिता है मूर्त अनुशासन, छड़ी की मार भी खाई ।
जरूरत की सभी चीजें, बिना माँगें यहाँ पाई ।।
पिता है छाँव पीपल की, बसा हर तीर्थ चरणन में ।
निहारूँ जब कभी खुद को, तुम्हारा चित्र दरपन में ।।
✍अरविन्द त्रिवेदी
महम्मदाबाद
उन्नाव उ० प्र०