पिता
मेरी धरती मेरा अम्बर,
मेरी सृष्टि मेरा समंदर,
बनके लहू बहते है मुझमें,
पिता है मेरे रगों के अंदर।।
सर से लेकर पांव तक,
धूप से लेकर छांव तक।
पिता हैं मेरे जीवन में,
शहर से लेकर गांव तक।।
रात के तारे दिन के उजियारे,
पिता है मेरे सबसे प्यारे।
नित वंदना मैं करता उनकी,
जैसे ईश्वर हों पिता हमारे।।
कितना परिश्रम करते है,
किसी विपत्ति से ना डरते है।
लालन पालन में जीवन भर,
परिवार के ही रहते है।।
© अभिषेक पाण्डेय अभि