“*पिता*”
“पिता” केवल एक रिश्ता ही नहीं, हमारे जीवन का आधार होता है। माँ के अलावा “पिता” ही वो पहला व्यक्ति होता है जो हमारे इस दुनियां में आने से सबसे ज्यादा प्रसन्न होता है। हम बचपन से लेकर युवा होने तक जिन-जिन चीजों पर इतराते हैं वे सब हमारे “पिता” की बदौलत ही हमे प्राप्त होती है। “पिता” एक ऐसा वटवृक्ष है जिसकी छत्रछाया में पूरा परिवार सुरक्षित रहता है। सभी रिश्तों में एकमात्र “पिता” ही ऐसा व्यक्ति है जो ना तो नाराज हो सकता है और ना ही रो सकता है। एक “पिता” का जीवन उस किसान की तरह होता है जो निरन्तर अपना खेत जोतता रहता है, भले ही प्रकृति उसका साथ दे या ना दे। लोग हमारे अंदर हमारे “पिता” की छवि और संस्कार देखते हैं। हमारे व्यवहार मे उनके व्यक्तित्व की झलक मिलती है। जितना प्रेम और सम्मान हम अपनी माँ का करते हैं उससे अधिक हमें अपने “पिता” का करना चाहिए। क्योंकि माँ यदि धरती का प्रतीक है तो “पिता” अनन्त आकाश का। जब तक आकाश से पानी नहीं बरसता धरती सूखी रहती है। वैसे ही जब “पिता” कमा कर दो पैसे घर लाता है तो माँ खाना बना के खिलाती है।
हर व्यक्ति का सपना होता है कि वो “एक अच्छा पिता बने” इसलिए अपने पिता का सम्मान करिये ताकि हमारे बच्चे हमारा सम्मान करना सीखें।
राधाकिसन मूंधड़ा, सूरत।