पिता
चार अक्षरो से शब्द बने
इन शब्दो का कोई मोल नही
अनमोल हुए ये शब्द जहाॅ में
कीमत इसकी कोई नही
रिस्ते नाते ए बस भूल कर
बस अपना धर्म निभाते है
धर्म होता गुरू का जैसे
बैसे कर्म बनाते है
जननी जनती 9माह गर्व मे बच्चो को
किन्तु ये सारी उम्र भार उठाते है
धन्य धन्य ये महान
जो आस कभी न उनसे रखते
दुनिया इनको कितने नामो से अलंकृत कर कहलाती है
कोई तुलना गगन से करता
कोई महानता बतलाता है
माॅ के आगे इनको समाज दूदलाता है
दर्द भरा रहता मन में
जा के इनसे कोई पूछे
जीवन भर पीढा सहते
दूर कभी न बच्चो से होते
कष्ट हमेशा वो सहते
इसलिए इन्हे पापा कहते। ।।।।।।।।