पिता हिमालय है
पिता परिवार की खातिर, हिमालय सा अचल रहता।
पिता का साथ है तो झोंपड़ी सा घर महल रहता ।।
पिता की हर खुशी कुर्बान, बच्चों के लिए रहती ।
पिता पाषाण है लेकिन, हृदयतल से कमल रहता।।
पिता का कर्म है पौरुष ,उसे दिनरात जलना है ।
परिश्रम की कढ़ाही में, उसे पूरा पिघलना है।।
पिता का फ़र्ज़ सेवा है , यही उसकी बड़ी पूँजी ।
पिता का ऋण अदा करके , उसे चुपचाप चलना है ।।
-जगदीश शर्मा सहज