पिता से पराई
सुन बिटिया, सुन बिटिया,
तेरी कर तो दी बिदाई है।
पर क्या करूं तेरी,
याद बहुत सताती
है।
उठा सुबह जब तो,
पहले तूझे आवाज लगाई है।
देखा तेरा कमरा तो,
सुनी तेरी चारपाई है।
जब खाना खाने बैठे तो,
तेरी थाली भी लगाई है।
तेरे बिन अब कैसे जिए,
दुविधा में जब मैं बैठ गया।
तेरी मां ने मुझे समझाया है,
बेटी का धन न कोई रख पाया है।
सुना था बचपन से मैंने,बेटियां तो पराई हैं।
इन्हें न कोई रख पाया है,
ए भगवान ये कैसी रीत बनाई है।
बेटी तो रम जाएगी नए रिस्तो के जहां मे,
पिता रह जाएगा अकेला इस संसार में।
✍️ सुतिषा राजपूत (बरवाला),
हरियाणा (पंचकुला)।
स्वरचित ।