“पिता” तेरा ही नाम आता है
सूरज निकलने से पहले, घर से निकलता है,
और देर से शाम आता है,
लगकर सीने से जिसके,
हर मर्ज से आराम आता है,
इंसान नही फरिश्ता है वो,
चरणों में जिसके चारोधाम आता है,
जब उठाता अपनी गोद में,
आसमां भी झुक जाता है,
खाने से पहले अपनी,
ढूंढकर मुझे खिलाता है,
त्याग, संघर्ष, छिपी ममता में,
“पिता” तेरा ही नाम आता है ।।
थामकर उंगली मेरी,
जिसने चलना सिखाया,
छांव में रखा मुझे,
खुद को धूप में जलाया,
इस दुनिया की भीड़ में जब,
खुद को अकेला पाया,
गलतियां सुधार आपने,
दोस्त बनकर समझाया,
जहाँ भी जाता, पीछे मेरे,
रहते हो बनकर साया,
कर नजरअंदाज गलतियां मेरी,
बेहिसाब प्यार बरसाया ।।
हो जाता है कभी, गुस्सा मुझसे,
अपने आप को ही कोसता है,
कुछ भी करने से पहले,
जो अपने बच्चों की सोचता है,
तोड़कर सपने को अपनी,
मेरे ख्वाहिशें जोड़ता है,
गर ममता की पहचान है “माँ”
तो “पिता” त्याग का देवता है,
जिम्मेदारियों के बीच से जो,
अच्छे संस्कार निचोड़ता है,
मैं बढूं उससे आगे
एक पिता ही ऐसा सोचता है ।।
-विनय कुमार करुणे