Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Jun 2024 · 2 min read

पिता के साथ

यूँ तो हम सब पिता का मान सम्मान करते हैं,
कुछ दिल से और ज्यादा औपचारिकता निभाते हैं।
पर विश्वास कीजिए कि हम हों या आप
अपवादों को छोड़ दें तो
हम उन पर बड़ा अहसान करते हैं।
तमाम विवशताओं जरुरतों के मद्देनजर ही
हम पिता को पिता कहते हैं।
जब तक हमें पता होता है कि
हमारी हर ख्वाहिश, उम्मीद और सपने
सिर्फ हमारे पिता से ही पूरे कर सकते हैं,
तभी तक ही पिता, हमारे सब कुछ लगते हैं
भगवान भी उनके आगे हमें फीके लगते हैं।
यूँ तो पिता की हर बात हमें चुभती है
उनकी सोच, बुद्धिमत्ता खीझ पैदा करती है,
उनका अनुभव गँवारु और पुराना लगता है
कम आय में भी जीवन जीने की कला
जानने वाला हमारा पिता
हमें बड़ा कंजूस और बेवकूफ लगता है।
उनकी नसीहतें हमें काटने दौड़ती हैं
उनकी सोच हमारे सपनों और स्वच्छंदता की राह में
हमें जीवन का सबसे बड़ा रोड़ा लगती हैं।
पर हम विवश नहीं होते हैं
क्योंकि हम बड़े समझदार होते हैं।
तभी तो आज ही पिता के लिए उनके बारे
बहुत कुछ सोच लेते हैं,
उनके त्याग, श्रम को नजरंदाज करने का
ताना बाना बड़े सलीके से तैयार कर लेते हैं।
उनके जीवन के उत्तरार्ध में
उनकी उपेक्षा, अपमान, तिरस्कार सब कुछ करते हैं
उनके ही श्रम और कमाई से बने
उनके घर, संपत्ति से दूर ढकेल देते हैं।
अपने स्वार्थ में हम सब कुछ भूल जाते हैं
सभ्यता और कर्तव्य की बात छोड़िए
हम मानवीय मूल्यों का भी खून कर देते हैं
जीते जी उन्हें मौत के मुहाने पर ले जाकर पटक देते हैं
और उनकी मृत्यु पर घड़ियाली आंसू बहाकर
दुनिया को गुमराह करते हैं,
अंतिम संस्कार और कर्मकांड के नाम पर
खूब दिखाया करते हैं,
अपने को लायकदार औलाद होने का
भरपूर प्रदर्शन करते हैं
पर हम यह भूल जाते हैं
कि अपनी औलादों के लिए
हम ही बड़ी नज़ीर पेश करते हैं।
और फिर कल में वही सब अपने साथ
दोहराए जाते हुए देखने को विवश होते हैं,
जो हम बीते कल में बड़ा बुद्धिमान बनकर
अपने प्रिय पिता के साथ जैसा किए होते हैं,
और आज जब खुद पर गुजरती है
तब आँसू बहाते, पश्चाताप करते हुए हाथ मलते हैं।

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश

Language: Hindi
1 Like · 64 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
हम चुप रहे कभी किसी को कुछ नहीं कहा
हम चुप रहे कभी किसी को कुछ नहीं कहा
Dr Archana Gupta
संवाद और समय रिश्ते को जिंदा रखते हैं ।
संवाद और समय रिश्ते को जिंदा रखते हैं ।
Dr. Sunita Singh
लोगों को खुद की कमी दिखाई नहीं देती
लोगों को खुद की कमी दिखाई नहीं देती
Ajit Kumar "Karn"
पलकों ने बहुत समझाया पर ये आंख नहीं मानी।
पलकों ने बहुत समझाया पर ये आंख नहीं मानी।
Rj Anand Prajapati
आपकी सादगी ही आपको सुंदर बनाती है...!
आपकी सादगी ही आपको सुंदर बनाती है...!
Aarti sirsat
बुढ़िया काकी बन गई है स्टार
बुढ़िया काकी बन गई है स्टार
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
बो बहाता नहींं हैं वो पी लेता हैं दर्द में आंसुओ के समुद्र क
बो बहाता नहींं हैं वो पी लेता हैं दर्द में आंसुओ के समुद्र क
Ranjeet kumar patre
ढाई अक्षर वालों ने
ढाई अक्षर वालों ने
Dr. Kishan tandon kranti
सरोकार
सरोकार
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
गुम है
गुम है
Punam Pande
* मिल बढ़ो आगे *
* मिल बढ़ो आगे *
surenderpal vaidya
लघुकथा - एक रुपया
लघुकथा - एक रुपया
अशोक कुमार ढोरिया
बिना अश्क रोने की होती नहीं खबर
बिना अश्क रोने की होती नहीं खबर
sushil sarna
*ऋषि नहीं वैज्ञानिक*
*ऋषि नहीं वैज्ञानिक*
Poonam Matia
उम्मीद
उम्मीद
शेखर सिंह
मारी थी कभी कुल्हाड़ी अपने ही पांव पर ,
मारी थी कभी कुल्हाड़ी अपने ही पांव पर ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
अपने वतन पर सरफ़रोश
अपने वतन पर सरफ़रोश
gurudeenverma198
मैंने एक दिन खुद से सवाल किया —
मैंने एक दिन खुद से सवाल किया —
SURYA PRAKASH SHARMA
दिल से हमको
दिल से हमको
Dr fauzia Naseem shad
गुनाह मेरा था ही कहाँ
गुनाह मेरा था ही कहाँ
Chaahat
मन भर बोझ हो मन पर
मन भर बोझ हो मन पर
Atul "Krishn"
कभी वो कसम दिला कर खिलाया करती हैं
कभी वो कसम दिला कर खिलाया करती हैं
Jitendra Chhonkar
23/195. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/195. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
🥀 *अज्ञानी की कलम* 🥀
🥀 *अज्ञानी की कलम* 🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
दोस्त मेरी दुनियां
दोस्त मेरी दुनियां
Dr. Rajeev Jain
लोग समझते हैं
लोग समझते हैं
VINOD CHAUHAN
कुर्सी
कुर्सी
Bodhisatva kastooriya
"सम्वेदनशीलता"
*प्रणय*
*लता (बाल कविता)*
*लता (बाल कविता)*
Ravi Prakash
कौशल
कौशल
Dinesh Kumar Gangwar
Loading...