पिता के प्रति श्रद्धा- सुमन
काशी का नूर , ज्ञान का सुरूर ,
महाराजा सी शान, तो फौजी की आन;
ईश्वर के स्वरूप के प्रतिरूप का कर्म थे आप,
हे पिता ! मेरा तो हर धर्म थे आप |
कभी हमारे दुखों का सलीब ढोकर;
तो कभी सांसारिक ज्ञान के गुरु होकर;
कभी बलशाली की तरह देते थे सरपरस्ती;
कभी आदर्श राम से , कभी विद्या -मानो माँ सरस्वती;
दुर्भावनाओं के जंजाल का विकल्प थे आप ,
मुझ में है गूँजता , आपके ही आशीर्वाद का आलाप I
भावनाओं के आवेग क्या शब्दों के मोहताज हैं ?
आप हमारे कल की सर्जना थे और अत्युत्तम प्रेरणा आज हैं;
कभी खिल-खिला के कहता था, हमारे भी खुशियों का संसार
आप जिएं हजारों साल………….साल में दिन हों पचास हजार ||