पिता के पदचिन्ह
पिता के पदचिन्ह
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में सोचती हूं मैं भी चलूं,
उस पथ पर
जिसको पापा ने रोशन किया,
बन जांऊ उन कदमों के निशां!
जो एक पहचान बन
अमर हो गए कारवां में।
छोड़ गए विरासत में,
अपने सत्कर्मों की छाप
जो एक मिसाल है जहान में!
में भी तुम जैसा बनना
चाहती हूं —–
इस जगत में कुछ अद्भभुत,
करना चाहती हूं
बनकर देश के सैनिक
रक्षा करते थे देश की,
शहीद हुए तुम वतन के खातिर!
बनकर वीर,बहादुर सैनिक–
मेरे पापा में भी तुम्हारे पदचिन्हों,
पर!चलकर देश की रक्षा
करना चाहती हूं!!!!
सुषमा सिंह*उर्मि,,
कानपुर उ०प्र०