पिता की नियति
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मंजिल तो, मैं पाकर ही रहूंगी।
पिता का नाम! रौशन करूंगी।।१।।
पिता की लाड़ली नियति हूॅं मैं।
मंजिल दूर है अभी छोटी हूॅं मैं।।२।।
माता-पिता की वीर पुत्री हूॅं मैं।
अपनी माता की परछाई हूॅं मैं।।३।।
सोच रहीं हूॅं जीवन में क्या बनू।
सोच रहीं हूॅं भीमराव जैसा बनू।।४।।
बड़ी होकर समाज सेवा करूंगी।
सब सुखी हो, कुछ ऐसा करूंगी।।५।।
इस के लिए, मुझे शिक्षा पाना है।
माता-पिता का आशीष पाना है।।६।।
माता! तुम्हीं- मेरी ‘गुरू-माता’ हो।
पिता! तुम्हीं- मेरे पालन-कर्ता हो।।७।।
पिताश्री! मुझको पढ़ाना है तुम्हें।
मेरे सपने! साकार करना है तुम्हें।।८।।
तभी तो, मैं! भीमराव जैसा बनूंगी।
अपने भारत का कल्याण करूंगी।।९।।
मुझे! पिता परमेश्वर ने ही भेजा है।
समाज की सेवा करने ही भेजा है।।१०।।
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रचयिता: प्रभुदयाल रानीवाल=====
====*उज्जैन*{मध्यप्रदेश}*=======
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