पिता की आंखें
देख कर तो लगता है,
ये आंखें बहुत कुछ सहतीं हैं।
कोई राज हो जैसे दफन इनमें,
चीख चीख कर कहतीं हैं ।।
जितना भी देखूं मैं इनमें,
सागर सी गहराई नजर आती है।
पर क्या ही करूं मैं आखिर,
पिता की आंखों को नाप नहीं पाती हैं।।
बस अब और शब्द नहीं मुझमें,
कि बयान में अपने सवाल कर पाऊं ।
देख आपकी सुंदर आंखें,
नई उम्मीद से जगमगा जाऊं ।।
©अभिषेक पाण्डेय अभि