“पिता का साया”
सब की चाहत, कि हो जहाँ मेँ, कोई सरमाया,
परवरिश को है, पर दरकार, पिता का साया।
गोद मेँ ले के, मुहल्ले मेँ, हाट, मेले मेँ,
कभी बिस्किट, तो खिलौनों का कभी दिलवाना।
हार कर, थक के, पसीने मेँ भले तर आना,
काम से लौटकर, जी भर के, उसका दुलराना।
हिदायतें भी, हर क़दम की, याद हैं मुझको,
पकड़ के हाथ मेँ उँगली, वो राह चलवाना।
अपनी औलाद के आगे,न ख़ुद को कुछ गिनना,
फ़र्क बेटी मेँ, या बेटे मेँ, न हरगिज़ जाना।
जाके स्कूल, एडमिशन वो, झट से करवाना,
दीदे-पुरनम, मगर मुस्का के, छोड़ कर आना।
गरज़ कि लाड़ले को, कोई कुछ न कह पाए,
ख़र्च सब काट करके, फ़ीस मगर भर आना।
हुआ बीमार, तो सोना न, रात भर उसका,
जाके अच्छे से अच्छे, डाक्टर को दिखलाना।
इल्मो-तालीम हो आला, यही ख़्वाहिश उसकी,
सँस्कारोँ का, ख़ज़ाना हो, आँख का तारा।
भले ही माँ की, अहमियत है निराली “आशा”,
जगह पिता की भी, हरगिज़ न कोई ले पाया..!
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रचयिता
Dr.asha kumar rastogiM.D.(Medicine), DTCD
Ex.Senior Consultant Physician, district hospital, Moradabad.
Presently working as Consultant Physician and Cardiologist, sri Dwarika hospital, near sbi Muhamdi, dist Lakhimpur kheri U.P. 262804 M.9415559964