पिता का सपना
अपने बच्चों में
मैं अपना भविष्य
सजाता हूंँ,
अपने अधूरे सपने
पूरे करने की आस
संजोता हूंँ,
एक चमकदार पत्थर को
कोहिनूर की तरह
तराशता हूंँ,
उनका बढ़ना, पढ़ना, खेलना,
बड़े शिद्दत से
निहारता हूंँ,
कभी पड़ जाएँ बीमार,
उनके सिरहाने में पूरी रात,
गुजारता हूंँ,
याद आते पिताजी,
जिनका था मैं सपना, यह सोच खुद को
धिक्कारता हूंँ,
क्या पूरा किया उनका सपना?
मन में यह सवाल, बारम्बार
दुहराता हूंँ।
श्री रमण ‘श्रीपद्’
बेगूसराय