पिता का दर्द
डॉक्टर रमेश बलिया शहर के जाने-माने डॉक्टरों में से एक थे। उनके क्लीनिक पर हमेशा मरीज़ों की भीड़ लगी रहती थी। डॉक्टर रमेश 75 साल की उम्र में भी बहुत फीट थे फुर्ती से अपने सभी काम करते थे।डॉक्टर रमेश मरीज़ों के नब्ज़ को तुरंत पकड़ लेते थे। उनकी दवाइयों में न जाने क्या जादू था कि मरीज़ एक गोली खाकर ही ठीक हो जाता था। समाज में डॉक्टर रमेश की जितनी इज़्ज़त थी, उससे कहीं ज़्यादा घर में उन्हें और उनकी पत्नी को ज़हालत मिलती थी। जो डॉक्टर साहब मरीजों के नब्ज पकडर जान लेते थे कि मरीज़ को क्या हुआ है अपने परिवार के नब्ज को नही पकड़ पाए थे।लोग कहते है कि बेटे से अच्छी बेटियाँ होती है बुढ़ापे में यदि बेटा माँ-बाप को नही सम्भाल सकता तो बेटियाँ सम्भाल लेती है। लेकिन डॉक्टर साहब की ज़िंदगी नर्क अपनी बेटियों की वजह से हो गया था।जिन बेटियों को बेटे की तरह पढ़ा-लिखा कर काबिल बनाया वही बेटियाँ उनके साथ हैवानों जैसा व्यवहार करती थी। डॉक्टर साहब की तीन बेटियाँ और एक बेटा थे। डॉक्टर साहब की बड़ी बेटी शिक्षा विभाग में दूसरी वकील तीसरी एम.एस.सी गोल्ड मेडलिस्ट और सबसे छोटा लड़का पढ़ाई पूरी करके किसी कंपनी में काम करता था। डॉक्टर साहब ने अपनी बेटियों की सभी ख़्वाईसे पूरी की लेकिन समय से उनकी शादी नही कर पाए थे यही उनकी सबसे बड़ी भूल थी। बड़ी बेटी और छोटे बेटे को छोड़ कर डॉक्टर साहब और उनकी पत्नी का ख्याल रखने वाला कोई नही था। उनकी बेटी जो वकील थी और छोटी बेटी न उनका ख्याल रखती न अपनी माँ का। बड़ी बेटी यदि उनका ख्याल रखती तो दोनों बहनें मील कर उसको मारती और घर से निकालने की धमकी देती। न जाने उनकों किस बात का दुःख था जो अपने माँ-बाप को सम्मान नही दे सकती थी। एक दिन अचानक डॉक्टर साहब फिसल कर गिर गए और उनके पैर में चोट आ गयी लेकिन एक डॉक्टर को ही अच्छा इलाज नही मील पाया। बड़ी बेटी और छोटे बेटे के तमाम कोशिशों के बावजूद उन दोंनो बेटियों ने उनक इलाज कराने नही दिया। माँ को भी धमकाया की यदि इलाज कराने की बात करेगी तो तेरे भी पैर तोड़ देंगे उन दोनों के आतंक से सभी भयभीत हो गए थे। समय से खाना-पानी नही मिलने पर दिन पर दिन डॉक्टर साहब की हालत खराब होती रही । 6 महीनों का असहनीय कष्ट झेलने के बाद डॉक्टर रमेश की मृत्यु हो गयी।
डॉक्टर रमेश को मरते दम तक एक ही दर्द था कि उनको -उनके किन कर्मों की सजा मिली थी । इस वजह से की मैने अपने से ज्यादा अपनी लड़कियों को ज्यादा महत्व दिया था, या मेरे प्रारब्ध अच्छे नही थे।
स्वरचित एवं मौलिक-
आलोक पांडेय गरोठ वाले
कहानी सत्य घटना पर आधारित है।