पिता और पुत्र
कंधे पर,
अपने पिता के ,
बेटा चढा है ,
मेला दिखाने ,
नङ्गे पाव,
ठेलम-ठेल मे वह दौडा है ।
कभी जलेबी,
खिलौने भी,
जब उसने चाहा है,
रेजकी गिन-गिन के
हर माॅग उसके,
हर्षित मन से पुरा किया है ।
हाथ पकड,
पाठशाला भी,
उसको पहुँचाया है ,
पढाई मे,
कोई कसर शेष न रह जाय,
यह चिंता हमेशा पिता को सताया है ।
बच्चे जब ,
था नन्हा -छोटा,
रहकर साथ वह दिन गुजारा है,
पंख उसके जब,
लगी पढाई की,
छोड पिता को बेटा उड गया है ।
अशक्त जब,
बना पिता,
देखभाल कोइ करे- वह ललाइत हैं,
अब तो बच्चे के ,
फोन इन्तजार मे,
महिनों वह गुजार देता हैं ।
#दिनेश_यादव
काठमाडौं, (नेपाल) #हिन्दी_कविता #Hindi_Poetry