पिता आसमान
माँ मेरी जमीन तो पिता आसमान है,
उनका होना लगे ईश्वर मेहरबान है,
मुश्किलों में ढाल बनकर खड़े रहते,
उनसे ही मेरी बनी एक पहचान है।
जिम्मेदारियों के प्रति सजग रहना सीखा,
उनसे ही कर्तव्य पथ पर बढ़ना है सीखा,
अधिकार और कर्तव्य में सामंजस्य हो,
यही सदा जीवन में करना है सीखा।
मेरे व्यवहार में जो दिखती निडरता है,
मेरे कर्मों में जो दिखती सजगता है,
यह उनके ही मार्गदर्शन का परिणाम है,
जो मेरे अस्तित्व में दिखती सशक्तता है।
मुश्किलों में भी जो मुझमें संयम है,
तकलीफ़ लगती फिर देखो कम है,
होठों पर जो मेरे तिक्त मधुर मुस्कान है,
उनके आशीष से लगे नही कोई गम है।
माँ धरा और पिता विस्तृत अम्बर हैं,
उनके होने से लगता नही कभी डर है,
अनुशासन जो सीखा है उनसे हमने,
फिर लगें सफलता का यही घर है।