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20 Jun 2021 · 2 min read

पिताजी का बाल विवाह

पिताजी बाल विवाह के प्रताड़ित थे ,
जब विवाह के पावन बंधन में वो बंधे थे
तो पिताजी दस साल के और
माँ पांच साल की हुआ करतीं थीं ,

पिताजी बतलाते थे की फेरों के टाइम
वो ऊँघ रहे थे ,
समय पंख लगा के उड़ता गया ,
पिताजी अब उच्च शिक्षा हेतु
गावं से बाहर चले गए ,
माँ गावं में ही रह कर
परिवार की सेवा करने लगीं ,
फिर एक वो समय आया जब
हमारे पिताजी ‘ मैकेनिकल इंजीनियर ‘
बन गए ,
माँ मात्र पांचवी पास थीं ,

अब आयी पिताजी की परीक्षा की घड़ी
हमारे माननीय दादा जी आये
उन्होंने पिताजी से कहा की –
अब तुम अपनी पत्नी को छोड़ दो
और दूजा ब्याह रचा लो ,
पिताजी बोले क्यों ?
इसकी क्या ज़रूरत आन पड़ी
क्या गलती हो आयी उससे की
ऐसे कटु वचन आप कहते हैं ,
फिर दादा जी बोले
देखो – आज़ाद
तुम ठहरे इंजीनियर
कहाँ ये पांचवी पास
क्या जोड़ बनता है इसका और तुम्हारा ?
पिताजी तिलमिला गए उनका खून खौल गया
बोले की –
“आपको इतना ही जोड़ बैठाना था तो मेरा क्यों किया विवाह जब मैं अबोध था ”
और इतना ही जोड़ बैठाना था तब मन में न आया
की बेटे को आप उच्च शिक्षा का रस्वादन देंगे
लेकिन बहु को घर के कामों में जोतेंगे ,
वो भी तो सुघड़ है , प्रखर बुद्धि की स्वामिनी है
मैं न छोड़ूंगा उसको अब वो मेरी अर्धांगिनी है ,

दादा जी अपना सा मुँह लिए रह गए
माँ ने पिताजी के सानिध्य में रह
इतना सीखा इतना सीखा
की अंग्रेजी भी वो पढ़ – समझ
लेतीं थीं ,

कभी कभी दिल दहलता है
जो पिताजी ने माँ को छोड़ दिया होता
तो इतनी सुसंस्कृत माँ हमें कहाँ मिलतीं ,

कहते हैं पुरुष बहुत दृढ होता है
नारी तो रो लेती है
लेकिन पुरुष अंदर ही अंदर जज़्ब किये रहता है
क्योंकि बचपन से उसको ये एहसास होता है
की आगे चल बहुतेरी ज़िम्मेदारी
वहन करनी होगी ,

लेकिन हर पुरुष नहीं समझता
अपनी ज़िम्मेदारी
गर्वित हूँ की पिताजी इतने समझदार हैं की
उन्होंने ये समझा की मनमर्ज़ी का
जीवनसाथी मिल जाये
ये ज़रूरी नहीं
कुछ तो सामंजस्य कुछ तो तालमेल बैठाने होते हैं
तब ही जीवन नैया पार लगे |

द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’
सत्य घटना पर आधारित रचना
‘ पिता दिवस ‘ पर मेरे पिताजी श्री चंद्र शेखर आज़ाद जी को विशेष रूप से समर्पित |

Language: Hindi
4 Likes · 4 Comments · 576 Views
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