पाषाण जज्बातों से मेरी, मोहब्बत जता रहे हो तुम।
ये सपने अपने आँखों में मेरी, जो देख रहे हो तुम,
बस परछाइयाँ हैं कोरे भ्रम की, कुछ और नहीं।
हमराही बनने की चाहत में, कदम बढ़ा रहे हो तुम,
पगडंडियां हैं अंतहीन राहों की, कुछ और नहीं।
चाहतें अपनी ख़्वाहिशों में मेरी, संजो रहे हो तुम,
बंजर भूमि पर फैले स्याह बादल हैं, कुछ और नहीं।
श्रद्धा अपनी जिस मूरत पर लुटा रहे हो तुम,
जीर्ण सूरत है टूटे खंडहर की, कुछ और नहीं।
कश्ती अपनी जिस सागर में बहा रहे हो तुम,
निशानी है वो हर पल के बवंडर की, कुछ और नहीं।
अक्स अपना आईने में मेरी, सजा रहे हो तुम,
वो टुकड़े हैं पारदर्शी शीशे की, कुछ और नहीं।
अनदेखी मुस्कुराहटों को मेरी, फर्ज अपना बना रहे हो तुम,
अदायगी है क़िस्मत के कर्ज की, कुछ और नहीं।
ओस की बूंदें सुबह से मेरी, मांग रहे हो तुम,
बेचैनियां हैं वो भयावह रातों की, कुछ और नहीं।
घर अपना सन्नाटों में मेरी, बना रहे हो तुम,
आवारगी है दर्द भरी चीखों की, कुछ और नहीं।
पाषाण जज्बातों से मेरी, मोहब्बत जता रहे हो तुम,
चिता है वो सुलगती यादों की, कुछ और नहीं।