पावस बहुत रुलाती हो
पावस बहुत रुलाती हो,
तरसा तरसा कर आती हो….
पीली चमड़ी वाली गर्मी,
होजाती जब बहुत अधर्मी
झुलसाती धरती का आँचल
बिन पानी रीते सब बादल ।
पावस हड़काओ सूरज को
रोके आग उगलते मद को
कहो मेघदूतों से जाकर
बांधे धूप सूर्य का आगर ।
इधर उधर बादल पागल से
बिना वस्त्र घूमें बालक से
सूख रहे नदियों के आँचल
सब कूपों के सूख रहे तल |
तेरा आना टलता जितना
सूखे का भय पलता उतना
रुण्ड-मुण्ड वृक्ष लतिकाएं
खड़े निरीह से मुख लटकाएं ।
पावस बहुत रुलाती हो,
तरसा तरसा कर आती हो….