पालना या परवरिश: एक सोचने का समय
पालना या परवरिश: एक सोचने का समय
समाज के इस दौर में, मां-बाप की जिम्मेदारी बढ़ गई,
कंपटीशन का स्तर इतना ऊंचा हो गया,
हर कोई चाहता है कि उनका बच्चा सफल हो,
आगे बढ़े, ऊंचाइयों को छुए, नाम कमाए।
पालन-पोषण का हर तरीका आज बदल रहा है,
मां-बाप अपने बच्चों को समाज के हिसाब से ढाल रहे हैं।
शिक्षा, खेल, कला, हर क्षेत्र में परफेक्शन की दौड़,
लेकिन क्या हो रहा है, क्या समझ रहे हैं वो?
बच्चे हैं, वो मशीन नहीं,
हर हार से टूट सकते हैं,
हर असफलता से झुक सकते हैं,
कभी-कभी रो सकते हैं,
पर क्या वो मां-बाप के सामने रो सकते हैं?
कहने को तो मां-बाप हैं,
लेकिन क्या उनके दिल में बच्चों के लिए जगह है?
क्या उनकी परेशानियां, उनके डर,
उनकी छोटी-छोटी हारें भी सुनने का समय है?
कहीं ऐसा तो नहीं कि सिर्फ सफलता की चाह में,
हमने उनकी आवाजें सुनी ही नहीं,
उनके दर्द को महसूस ही नहीं किया?
आज की परवरिश में कमी रह गई है,
हमने पालन को तो महत्व दिया,
लेकिन परवरिश की जड़ों को भूल गए।
हम चाहते हैं कि वो समाज में आगे बढ़ें,
पर क्या हमने उन्हें मानसिक शक्ति दी?
क्या हमने उन्हें सिखाया कि हार भी जीवन का हिस्सा है?
क्या हमने उन्हें आत्मबल दिया,
कि वो हार के बाद भी उठ खड़े हों?
बच्चे हैं, पर उन्हें भी महसूस होता है,
वो भी दुखी होते हैं, हताश होते हैं,
जब वो हारते हैं, तो क्या हम उन्हें समझते हैं?
क्या हमने उनके दिल को सुना,
क्या हमने उनके आंसुओं को पोंछा?
पालना तो हम कर रहे हैं,
लेकिन परवरिश में कहीं न कहीं हार रहे हैं।
बच्चे हमारे हैं, पर क्या हमने उन्हें वो विश्वास दिया?
कि जब वो हारें, तो उन्हें यकीन हो,
मां-बाप उनका साथ देंगे,
उन्हें समझेंगे, उनका हाथ थामेंगे।
हमने उन्हें सफल बनाने का सपना तो दिखाया,
पर क्या हमने उन्हें सिखाया कि असफलता से डरना नहीं चाहिए?
क्या हमने उन्हें वो ताकत दी,
कि जब पूरी दुनिया उनके खिलाफ हो,
तब भी वो खड़े रह सकें,
अपनी आत्मा के बल पर,
अपने मां-बाप के साथ के भरोसे पर।
आज का समाज एक दौड़ है,
लेकिन इस दौड़ में हम अपने बच्चों को कहाँ ले जा रहे हैं?
क्या हम उन्हें इतना मजबूत बना रहे हैं,
कि जब वो गिरें, तो उठ सकें,
कि जब वो हारें, तो फिर से लड़ सकें?
परवरिश का मतलब सिर्फ आगे बढ़ना नहीं,
परवरिश का मतलब है,
हर परिस्थिति में मजबूत बने रहना,
हर मुश्किल का सामना करना,
हर हार से कुछ नया सीखना,
और फिर से उठ खड़े होना।
बच्चे सिर्फ मार्केट के प्रोडक्ट नहीं हैं,
उनकी आत्मा भी है, उनके जज्बात भी हैं,
उनकी इच्छाएं, उनकी ख्वाहिशें,
उनके डर, उनके सपने, सब कुछ है।
पर क्या हमने कभी उन सपनों को समझा?
क्या हमने कभी उनके डर को महसूस किया?
पालन से बच्चे सफल हो सकते हैं,
पर परवरिश से वो इंसान बनेंगे।
इंसान, जो न सिर्फ समाज में आगे बढ़ेगा,
बल्कि हर मुश्किल में खड़ा रहेगा,
हर हार से कुछ सीखेगा,
हर असफलता को अपने आत्मबल से पार करेगा।
मां-बाप की जिम्मेदारी सिर्फ पालन तक सीमित नहीं,
उन्हें परवरिश भी करनी होगी,
उन्हें अपने बच्चों के दिलों में वो विश्वास भरना होगा,
कि चाहे कुछ भी हो जाए,
मां-बाप उनके साथ हैं,
हर हार, हर जीत में, हर पल, हर सांस में।
पालना सिर्फ बच्चों को बड़ा बनाता है,
लेकिन परवरिश उन्हें इंसान बनाती है।
इंसान, जो न केवल समाज में सफल हो,
बल्कि हर चुनौती का सामना कर सके,
हर परिस्थिति में मजबूत रहे,
और सबसे बढ़कर, अपने दिल में आत्मविश्वास बनाए रखे।
आज के मां-बाप को ये समझना होगा,
कि उनके बच्चों का भविष्य सिर्फ उनके करियर में नहीं,
उनकी आत्मा, उनके दिल, उनके मानसिक बल में है।
उनकी परवरिश में है,
जिससे वो हर परिस्थिति में खड़े रह सकें,
हर हार से सीख सकें,
और अपने जीवन में एक सच्चे, मजबूत इंसान बन सकें।
बच्चों की लंबी यात्रा परवरिश से तय होगी,
ना कि सिर्फ पालन से।
इसलिए मां-बाप को चाहिए,
कि वो अपने बच्चों को प्यार दें,
समझें, सुनें, और साथ दें।
उनके दिलों में वो आत्मविश्वास भरें,
कि चाहे कुछ भी हो जाए,
मां-बाप हमेशा उनके साथ खड़े रहेंगे।
पालन और परवरिश,
दोनों ही जरूरी हैं,
लेकिन परवरिश में वो ताकत है,
जो बच्चों को इंसान बनाती है,
जो उन्हें समाज के हर तूफान से लड़ने की शक्ति देती है,
जो उन्हें सिखाती है,
कि असफलता का मतलब अंत नहीं,
बल्कि एक नई शुरुआत है।
इसलिए मां-बाप को अब इस दिशा में सोचना होगा,
सिर्फ पालन नहीं,
परवरिश पर भी ध्यान देना होगा।
क्योंकि बच्चे मार्केट के प्रोडक्ट नहीं हैं,
वो हमारे दिल के टुकड़े हैं,
और उनकी परवरिश में ही उनका और हमारा भविष्य है।