पालघर हत्याकांड
अब हम और
बर्दाश्त नहीं करेंगे
धर्म निर्पेक्षता
की गंदी गाली ;
अब हम और
सुनना नहीं चाहते
डरे हुए तथाकथित
विद्वानों के
मूर्खता भरे वक्तव्य ;
अब हम और
सहना नहीं चाहते
वक्त के तमाचों को ;
बराबर मत
समझिए पाँचों को ।
डरे वो
जिसका पूरा
घर काँच का हो,
हमें तो सिर्फ़
तोड़ना है
अपने पत्थर के
मज़बूत घर के
दरवाज़ों और
खिड़कियों में
लगे हुए काँचों को ।
बराबर मत
समझिए पाँचों को ।
उठो ! जागो !
और समझो
कि किस
षडयंत्र पूर्वक
दबाने का
प्रयास ज़ारी है
हमारी ही आवाज़ को
हमारे ही घर में ।
ये आवाज़ ही
हमारी सँस्कृति है
इसका होना ही
हमारा होना है ।
इसलिए जागो
और पुनर्ज्वलित
करो अपने ही
अंतस की
धीमी हो चुकी आँचों को ।
बराबर मत
समझिए पाँचों को ।
—– ईश्वर दयाल गोस्वामी ।