पारिवारिक बंधन
हमारे ऊपर सदा से ही
रहता परिवार का साया
सपरिप्रेक्ष्य में हमसबों को
देता सहचारिता यहां पर
हमसबों को इस रत्नाभ पे
सतत बंधे रहे इस बंधन में।
कोई न देता सोहबत जहां में
न किसी का कोई होता यहां
जो हमारे अतिशय विद्यमान
सतत रहता प्रायः बहुधा वही
अक्सर हो जाता पृथक हमसे
एकांकी यही बंधन में न होता ।
अगर किसी को हम मानते
स्वजन इस जगत, संसार में
मित्र, सखा हो या कोई सखियां
अक्सर न देता साथ कोई हमारा
परिवारिक सदस्य ही हमें सतत
देता है साथ इस अनूठे जहांन में।
पारिवारिक ही ऐसा होता बंधन
जिसमें न कोई क्लेश न विभीषि
परिवार के सदस्य ही हमसब को
हर अवस्था, हालत में देता साथ
चाहे कितनी भी बड़ी हो उपपाद्य
अंत्य सांस तक करते रक्षा हमारे ।
अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार