पारखी
तुम हो तो कितनी खुशनुमा है जिंदगी,
तुम हो तो हर करतब जैसे हो बंदगी ..
उठते बादल घनघोर घटाएं तडित बिजली,
आ जाते बादल, बंद जैसे आंखें तुम नहीं.
तुम्हीं चेतन, अवचेतन तुम्ही, विवेक तुम्ही,
जहां जाओ छाया परचम ज्ञान-विज्ञान भी.
तुमसे जो जुडे रहा, वो इंसान बने रहा,
सीमाएं जो लांघ गया, शैतान हैवान बना,
लेखक तुमहीं पाठक तुमहिं दर्शक तुमहिं.
रचयिता तुमहिं, पालक, विनाशक तुमहिं.
तुम गुरु हो बलिहारी तुमहिं, सद् गुरु कौन,
संज्ञान लो, बोध दो, या सभी तुमहिं तुमहिं.
तुम हो तो कितनी खुशनुमा है जिंदगी ,
तुम हो तो हर करतब जैसे हो बंदगी .।।
©स्वरचित मंच @साहित्यपीडिया