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12 Jul 2021 · 1 min read

पाया जिनसे जरा भी प्यार…

पाया जिनसे जरा भी प्यार
उन सबका दिल से आभार

रुँध – रुँध जाते बाहर आते
मन के मेरे कोमल उद्गार

माया का मोहक जाल बिछा
भरमा न यूँ मुझको संसार

सुख के हसीं लम्हों का भी
अब न उठाया जाता भार

लाख जतन करके हम हारे
किसी विध आता नहीं करार

टूटी कमर बूझे नहीं कोई
पड़ी वक्त की तगड़ी मार

कैसा विचित्र ये रोग लगा
निदान मिले न मिले निस्तार

मन हल्का हो कहकर मन की
किसपे इतना जोर-अधिकार

ज्यों-ज्यों चाह सिकुड़ती जाए
होता जाए आत्म – विस्तार

जाना अकेले परली पार
ढुलता नहीं तन-मन का भार

असमंजस में “सीमा” भारी
कैसे करे भवसागर पार

-© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
“मृगतृषा” से

3 Likes · 2 Comments · 334 Views
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