किसान
वो किसान और उसकी.किसानी ही है
जिसका कोई सानी हो नहीं सकता
पत्थरों को फोड़ कर
धाराओं को मोड़ कर
और कोई जीव को जीवन देने हेतु
बीज बो नहीं सकता
तपस्वी सा दिन रात स्वयम् भूख से लड़
दूसरों की भूख के शमन को
हड्डियों को रेत कर
अद्भुत साहस सेंत कर
हमेशा तैयार विसंगतियों के दमन को
कोई और प्रस्तुत हो नहीं सकता
वो किसान और उसकी किसानी ही है
जिसका कोई सानी हो नहीं सकता
भूख से जीतने की होड़ में अड़ा
दधिचि सा देश हित में
निछावर होने को खड़ा
अपवे रक्त की बूँदें
फसल के दानों मे करता जमा
वरना कहाँ से आता पोषण वहाँ!
और अंततः जब
उसका सारा सत् चुक जाता है
तब खंखड हुआ सूखा शरीर
फंदे पर झूलता नज़र आता है
स्वयम् को मिटा ,मिट्टी को जिंदगानी दे
ऐसा दूसरा जहाँ में हो नहीं सकता
वो किसान और उसकी किसानी ही है
जिसका कोई सानी हो नहीं सकता
धरतीपुत्रो ं के सिवा मिट्टी और खेतों में
अपना बुढ़ापा,अपनी जवानी
खो नहीं सकता
जीव को जीवन देने हेतु
बीज बो नहीं सकता
किसान का कोई
सानी हो नहीं सकता!!!!!