पापियों के हाथ
ज्यों एक शिशु ने भ्रूण बनकर, एक जननी के गर्भ में प्रवेश किया।
चिकित्सा और जाँच के नाम पर, परिवार ने हर दिन क्लेश किया।
डॉक्टर भी पेशे से गद्दारी कर, गर्भ के हर भ्रूण का लिंग भाँपते हैं।
कन्या भ्रूण हत्या करते समय, पापियों के हाथ भी नहीं काँपते हैं।
तुमने भी बहुत कोशिशें करी, किन्तु नियति कुछ और चाहती थी।
हुआ कन्या जन्म ऐसे घर में, जहाँ वधू तो केवल बेटा माँगती थी।
खाँके बदले व ढाॅंचे बदले, हम फिर भी लड़के का नाम जापते हैं।
कन्या भ्रूण हत्या करते समय, पापियों के हाथ भी नहीं काँपते हैं।
समाज को नया रूप मिल गया, रिश्ते को नया स्वरूप मिल गया।
लड़का-लड़की में भेद न मिटा, जाँचने का तरीका ख़ूब मिल गया!
कन्या होने पर ढोंगी लोग, भावी दहेज की उथल-पुथल नापते हैं।
कन्या भ्रूण हत्या करते समय, पापियों के हाथ भी नहीं काँपते हैं।
जो कन्या को मारा जायेगा, तो समाज की तस्वीर पूरी कैसे होगी?
जिस घर में लक्ष्मी जन्म लेगी, वहाँ की तक़दीर अधूरी कैसे होगी?
फिर क्यों संतान की चाह को लोग, ऑंसुओं की बूंदों से मापते हैं?
कन्या भ्रूण हत्या करते समय, पापियों के हाथ भी नहीं काँपते हैं।
आज की बेटियाँ तो हर क्षेत्र में, इस देश का परचम लहरा रही हैं।
जल, थल, वायु, पर्वतों पे, राष्ट्रीय ध्वज को शान से फहरा रही हैं।
कोई भी तथ्य मनगढ़ंत नहीं, इन्हें तो संपादक ख़बरों में छापते हैं।
कन्या भ्रूण हत्या करते समय, पापियों के हाथ भी नहीं काँपते हैं।