पापा
तुम्हारे पापा रो रहे थे
कितनी दुआएँ देते
ज़रा सी बात थी
कोई तीर नहीं मारा था तुमने
फिर भी तुम्हारी ज़रा सी कोशिश पर भी
छलक आईं थीं आँखे उनकी
मैंने तो बस आवाज़ सुनी थी
भर्राई हुई
खुशी और जज़्बात के तास्सुरात से
लरज़ती
और मेरे पास….
कोई एहसास नहीं थे
जो रिश्तों या
एहसासों से भरे होते
हाँ
कुछ शब्द ज़रूर थे
जिन्हें सुन कर ही
मुझे सिहरन हो आती थी
बचपन से ही
वो शब्द था
पापा….