पापा जैसी जिम्मेदारी
बचपन में कितनी ज़िद्दी किया करते थे , कुछ को पूरा करते ओर कुछ को मजबूरियों के तंग जेबो में दबा लिया करते थे ।
हसना खेलना सब उनसे ही सीखा था मैने , कांच की बोतल के टूटने पर डाट खाई थी मैने ।
बचपन में छोटी साइकिल से रेस लगाया करता था । गिरकर लौटकर जमकर फटकार भी खाया करता था ।
एक दिन पापा जैसा कर्तव्य में भी अच्छे से निभाऊंगा ।।
कितने ही मस्तियो में ना जाने क्या क्या समान थोड़ा था। पापा ओर मां की डाट से बचने के लिए उन टुकड़ों को दूर फेका था ।
……खेर पता तो चल ही जाता है ??? फिर पापा की प्यार भरी मार को आंसूओ में तब्दील करके घंटो रोया था ।
स्कूल की छुट्टी पर भरी दोपहर में तपते हुए छाव में मुझे ले जाते थे,
खुद के तंग जेबो से मेरी जिद्द को ना जाने कैसे पूरा कर जाते थे ।
इन अहसानों का ऋण केसे पूरा कर पाऊंगा ।
एक दिन पापा जैसा कर्तव्य में भी अच्छे से निभाऊंगा ।।