पापा जी
कभी पेट पर लेकर अपने, हमें सुलाते पापा जी
कभी बिठा काँधे पर हमको, खूब घुमाते पापा जी
छाया देते घने पेड़ सी, लड़ते वो तूफानों से
हो निष्कंटक राह हमारी, उनके ही बलिदानों से
विपरीत रहें हालात मगर, कभी नहीं घबराते हैं
ओढ़ हौसलों की चादर को, हँसते और हसाते हैं
हँसकर तूफानों से लड़ना, हमें सिखाते पापा जी
कभी बिठा काँधे पर हमको, खूब घुमाते पापा जी
बोझ लिए सारे घर का वो, दिन भर दौड़ लगाते हैं
हम सबके सपनो की खातिर, भूखे भी रह जाते हैं
गिरवी रखते पगड़ी अपनी, घर को कभी बचाने में
जूते घिस जाते हैं उनके, हमको योग्य बनाने में
खुद के कपड़े फ़टे हुए पर, हमें सजाते पापा जी
कभी बिठा काँधे पर हमको, खूब घुमाते पापा जी
लगते भले कठोर हमें पर, नाज़ुक दिल के होते हैं
दर्द कभी हमको होता तब, पापा दिल से रोते हैं
करें सामना डटकर कल का, यहीं हमें सिखलाते हैं
सही गलत क्या दुनिया में है, हमें सदा बतलाते हैं
गिरके उठना उठके चलना, सदा सिखाते पापा जी
कभी बिठा काँधे पर हमको, खूब घुमाते पापा जी
नाथ सोनांचली