पापा की शरारत
पापा की शरारत
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जब मैं छोटी बच्ची थी ,
बहुत शरारत करती थी।
पापा मुझको खूब चिढ़ाते,
हमारे साथ अठखेलियां हे करते।
हमको बहुत मजा है आता–
जब पापा घोड़ा बन जाते,
कभी उछलते कभी भागते!
पीछे-पीछे हम सब भागते,
फिर भी उनको हम न छू पाते।
बचपन के दिन याद बहुत है आते।।
कभी अकेले बैठ ये सोचा करते,
बचपन के दिन होते भोले भाले–
रह-रह करके याद है आते।
जब मैं छोटी बच्ची थी,
बहुत शरारत करती थी!!
बचपन के दिन याद बहुत है आते—–
सुषमा सिंह *उर्मि,,
कानपुर