पापा की बिटिया
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गर्मी की छुट्टी
ढेर सारी मस्ती।
जिन्दगी फूलों सी
खिल खिला उठी।
नये-नये करतब,
नये-नये कलाकारी।
कभी खूब शरारतें,
कभी खातिरदारी।
कभी कांधे पे चढ़ती,
कभी पीठ की सवारी।
कभी नाज नखरे,
फरमाइशें ढ़ेर सारी।
पापा के संग-संग,
मस्त बिटिया प्यारी।
कभी तंग करती,
कभी रूठ जाती।
मनाते ही बिटिया,
क्षण में मान जाती।
अपनी इसी अदा से,
पूरे घर को लुभाती।
मेरा आँगन बना है,
एक सुंदर फुलवारी।
????-लक्ष्मी सिंह ?☺