Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
13 Jul 2017 · 2 min read

पापा कहते हैंं…

पापा कहते हैं , आज के बच्चों की यह सबसे बड़ी ब्यथा है पापा कहते हैं काबिल बनो , पापा कहते हैं सफलता के झंडे गाड़ो, जो मैं न कर सका वो तुम करो लोग हमारे नाम से नहीं तुम्हारे नाम से हमें पहचाने ।
लगभग हर एक पिता की यहीं जिज्ञासा है, अपने बच्चों से यहीं इच्छा है ।
यहीं कारण है कि पापा कहते हैं बस कहते ही रहते है।
माना युग बदल रहा है , परिवेश बदल रहा है, सभ्यता,संस्कार, संस्कृति अपने विलुप्त होने के कागार पर आ खड़ी हुई है
किन्तु एक पिता के मन की दशा बदली है क्या?
बच्चों के उज्जवल भविष्य के प्रति उसकी चिन्ता कम हुई है क्या?
बच्चों से ऐसी प्रत्याशा रखना क्या जायज नहीं है?
मैं भी एक पिता हूँ, अपने बच्चों को एक साफ सुथरा, सरल व सुन्दर जीवन दे सकूँ इसके लिए निरंतर सोलह घंटे थकावट होते हुये भी बीना थके काम करता हूँ, इस समाज के हर क्षेत्र में स्थापित ठेकेदारी प्रथा से प्रति दिन लड़ता हूँ।
साहब इन ठेकेदारों से होने वाली द्वन्द में आत्मा लहुलुहान हो जाती है, हृदय दर्द का आलय बन जाता है किन्तु हम कदापि इसका भान अपने नवनिहालों को होने नहीं देते।
आप हीं बतायें होने देते हैं क्या? नहीं न!
अब आप ही बतवे साहब इतने दारुण दुख का वरण करने के पश्चात पापा कहते हैं तो क्या गलत कहते है?
अपने बच्चों से कोई आशा रखते है तो क्या यह अनुचित करते है?
और हाँ अगर पापा का कहना, आशा रखना मिथ्या है तो फिर ये बच्चे ही बताये अपने शब्दों में समझायें पापा करें तो क्या करें।
अपने बच्चों को एक आधार पूर्ण जीवन देने के चक्कर में हमारे बच्चे कब बड़े हो गये ये पता ही नहीं चलता और जब पता चलता है तो आपके और हमारे समक्ष यहीं अनंत प्रश्न होता है…..
पापा आखिर क्यों कहते हैं ।
पापा के मनोदशा को कौन समझे?
पापा के उन प्रयासों का आखिर पुरस्कार क्या है
सही मायने में अर्थ क्या है क्या हमे भी कोई बतायेगा
इन निर्जीव हो चले प्रश्नों का कोई उत्तर देगा??????
क्या हमें अधिकार नहीं है कि हम भी एक उच्चकोटि की जीवनशैली अपनाये और उसी के हो जाये।
अपने इच्छाओं को पुरा करे , परिस्थितियों से कोई समझौता न करें ।
हम भावी पीढी के समबद्ध क्यों सोचें?
किन्तु ऐसा हो सकता है क्या?
नहीं न; यह कभी नहीं हो सकता कारण यह प्रकृति विरुद्ध है , कल हमारे पापा ने हमें कहा , हमारे लिए खुद को अपने तमाम जीवन को हमरी भलाई पर न्योछावर कर दिया आज वहीं हमें करना है जो हम कर रहे हैं , और यहीं विरासत कल इन्हे भी मिलने वाली है।
अगर ये आज न सम्हले फिर कल क्या होगा?
हैं अनंत का तत्व प्रश्न यह
फिर क्या होगा उसके बाद?
पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
नरकटियागंज
प.चम्पारण
बिहार
9560335952
20/5/2017

Language: Hindi
Tag: लेख
546 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from संजीव शुक्ल 'सचिन'
View all
You may also like:
संकल्प
संकल्प
Dr. Pradeep Kumar Sharma
#बात_बेबात-
#बात_बेबात-
*Author प्रणय प्रभात*
"फुटपाथ"
Dr. Kishan tandon kranti
*बोल*
*बोल*
Dushyant Kumar
छप्पर की कुटिया बस मकान बन गई, बोल, चाल, भाषा की वही रवानी है
छप्पर की कुटिया बस मकान बन गई, बोल, चाल, भाषा की वही रवानी है
Anand Kumar
कुछ मीठे से शहद से तेरे लब लग रहे थे
कुछ मीठे से शहद से तेरे लब लग रहे थे
Sonu sugandh
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Jitendra Kumar Noor
धोखा
धोखा
Sanjay ' शून्य'
डीजल पेट्रोल का महत्व
डीजल पेट्रोल का महत्व
Satish Srijan
आज भी
आज भी
Dr fauzia Naseem shad
*अध्याय 8*
*अध्याय 8*
Ravi Prakash
अजब है इश्क़ मेरा वो मेरी दुनिया की सरदार है
अजब है इश्क़ मेरा वो मेरी दुनिया की सरदार है
Phool gufran
बात
बात
Shyam Sundar Subramanian
अद्वितीय संवाद
अद्वितीय संवाद
Monika Verma
💐प्रेम कौतुक-401💐
💐प्रेम कौतुक-401💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
ताप
ताप
नन्दलाल सुथार "राही"
.........?
.........?
शेखर सिंह
उत्तम देह
उत्तम देह
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
3306.⚘ *पूर्णिका* ⚘
3306.⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
तब तो मेरा जीवनसाथी हो सकती हो तुम
तब तो मेरा जीवनसाथी हो सकती हो तुम
gurudeenverma198
जिन्होंने भारत को लूटा फैलाकर जाल
जिन्होंने भारत को लूटा फैलाकर जाल
Rakesh Panwar
पुस्तक समीक्षा- उपन्यास विपश्यना ( डॉ इंदिरा दांगी)
पुस्तक समीक्षा- उपन्यास विपश्यना ( डॉ इंदिरा दांगी)
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
सत्य केवल उन लोगो के लिए कड़वा होता है
सत्य केवल उन लोगो के लिए कड़वा होता है
Ranjeet kumar patre
जुदाई - चंद अशआर
जुदाई - चंद अशआर
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
‘‘शिक्षा में क्रान्ति’’
‘‘शिक्षा में क्रान्ति’’
Mr. Rajesh Lathwal Chirana
नौका को सिन्धु में उतारो
नौका को सिन्धु में उतारो
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
सत्य ही सनाान है , सार्वभौमिक
सत्य ही सनाान है , सार्वभौमिक
Leena Anand
ख़ुद को हमने निकाल रखा है
ख़ुद को हमने निकाल रखा है
Mahendra Narayan
अब मुझे महफिलों की,जरूरत नहीं रही
अब मुझे महफिलों की,जरूरत नहीं रही
पूर्वार्थ
डा. तेज सिंह : हिंदी दलित साहित्यालोचना के एक प्रमुख स्तंभ का स्मरण / MUSAFIR BAITHA
डा. तेज सिंह : हिंदी दलित साहित्यालोचना के एक प्रमुख स्तंभ का स्मरण / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
Loading...