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6 Apr 2024 · 3 min read

*अध्याय 8*

अध्याय 8
गिंदौड़ी देवी मॉं तथा सुंदरलाल ताऊ कहलाए

दोहा

कोई खुश धन से हुआ, कोई पाकर प्यार
दो राहों पर चल रहा, इसी तरह संसार

1)
मनवांछित वरदान पा गए मानो नव निधि पा ली
सुंदरलाल मुदित थे सारी इच्छाओं से खाली
2)
नाच रहा था मन उनका फूला था नहीं समाता
गूॅंगे को गुड़ मिला भला क्या उसका स्वाद बताता
3)
कभी गोद में लेकर राम प्रकाश देखते जाते
कभी हृदय से भावों से भर बारंबार लगाते
4)
कभी चूमते होठों से ऑंखों से बातें करते
कभी गाल पर देते थपकी होले-होले बढ़ते
5)
फिर चल दिए गोद में लेकर राम प्रकाश उठाए
मानो लगे पंख हो सुंदर लाल इस तरह आए
6)
घर पहुॅंचे तो कहा गिंदौड़ी देवी से ले आया
बालक राम प्रकाश गोद में यह ईश्वर की माया
7)
रुक्मिणि की मॉं सदा आज से यह मॉं तुम्हें कहेगा
दर्जा इसके लिए तुम्हारा मॉं का सदा रहेगा
8)
तुम होगी इस बालक की मॉं मैं ताऊ कहलाऊॅं
रिश्ता नया इस तरह इससे सुंदर आज बनाऊॅं
9)
तुम्हें मानकर मॉं यह तुमसे सदा लाड़ पाएगा
धन्य-धन्य यह तुम जैसी मॉं पाकर हो जाएगा
10)
किंतु रहेगा सदा कटोरी देवी ही का पोता
लिखा भाग्य में जिसके जो वह सिर्फ उसी का होता
11)
हमें मिला यह सिर्फ इसलिए इस पर प्यार लुटाऍं
देखें मुस्काते इसको हम भी प्रसन्न हो जाऍं
12)
इतना है संबंध हमारा इस बालक से नाता
मिलें हमें दो दिन की खुशियॉं यह आनंद प्रदाता”
13)
सुना गिंदौड़ी देवी ने तो बालक को चिपटाया
बोलीं “आज धन्य हूॅं मैं जो मॉं का दर्जा पाया
14)
राम प्रकाश गोद लेने का शुभ विचार जो आया
सब प्रकार से यह विचार उत्तम है मन को भाया
15)
मेरे मन की बात छीन ली धन्य आपकी करनी
धन्य-धन्य है शुभ निर्णय यह कही न जाए बरनी
16)
मेरे मन में बहुत दिनों से हर दिन था यह आता
कितना अच्छा होता राम प्रकाश अगर आ जाता
17)
त्याग आपका यद्यपि जग में अद्भुत कहलाएगा
नहीं आपके हाथ त्याग से किंचित भी आएगा
18)
परम प्रेम का दिया उदाहरण जग क्या याद करेगा
गया वंश जो डूबा वह इससे क्या कभी भरेगा
19)
नहीं आपको अपना ताऊ यह बालक समझेगा
जिस दादी का पोता यह केवल उसको बल देगा
20)
कौन बाद मरने के जग में किसे याद करता है
भला दूसरे के सुत से भी कभी वंश बढ़ता है
21)
जग के हैं संबंध सभी कुछ दिन के खाने वाले
खाकर-पीकर मौज उड़ा कर फिर सब जाने वाले
22)
महाकाल की धूल पड़ी तो कुछ भी नहीं रहेगा
किसके ताऊ कैसी मॉं कोई कुछ नहीं कहेगा
23)
पुत्र पिता-मॉं की सदैव संपत्ति मात्र खाते हैं
मुॅंदी ऑंख दसवें के दिन से उन्हें भूल जाते हैं
24)
किंतु भाग्य में लिखा हमारे तो यह ही आएगा
दो दिन का संबंध चलो यह ही शुभ कहलाएगा”
25)
वचन गिंदौड़ी देवी के सुन साधु पुरुष यह बोले
“यह रहस्य अटपटे अरे यह कैसे तुमने खोले
26)
कड़वा सत्य यही है जग है स्वार्थों पर आधारित
नहीं तुम्हारी बातों में कुछ गलत नहीं हो चिंतित
27)
तुमने ठीक कहा बेटे सब धन के लोभी होते
कहा ठीक दसवें के दिन के बाद कौन कब रोते
28)
कौन जानता है यह बालक भी कैसा निकलेगा
क्या भविष्य की गारंटी है ब्रह्मा भी क्या लेगा
29)
हमें सिर्फ जग में अपना उत्तम कर्तव्य निभाना
परम प्रेम में इस बालक के हमें डूब बस जाना
30)
बदले में कुछ मिले न मिले हम क्यों आस लगाऍं
हमें याद यह करे न करे हम इस पर क्यों जाऍं
31)
मुझे पता है बालक राम प्रकाश तुम्हें है प्यारा
प्राणों से भी अधिक चाहती हो अधिकार तुम्हारा
32)
रुक्मिणि की मॉं यही सोच कर राम प्रकाश लिया है
परम प्रेम हम इसको दें जो प्रभु ने हमें दिया है”

दोहा

परम प्रेम की निधि बड़ी, परम प्रेम भंडार
परम प्रेम में शब्द कब, मिलता है अधिकार
__________________________________________________

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