पान चबाएं की दाग छुड़ाए चच्चा
आँख दबाए पान चबाए ,रह रह कर मन ही मन मुस्काए।
चकर बकर देखत हैं चच्चा ,जाने किसपर हैं नजर गड़ाए।
सफेद कुरता पर कुछ बूंदे जो चू गयी हैं पान रस की,
चच्चा साँसत में पड़ गए कि, पान चबाएं की दाग छुडाएं।
फिर चच्चा को यह सूझी ,की मलिकाइन फिचै देंगी।
दाग पे दंड दंड प्रहार करेगीं, सारी लाली खींचै देंगी।
गरिया के कह देंगी लाली से ,भाग जैहौ फिर नजर न आए।
चच्चा साँसत में पड़ गए कि ,पान चबाएं की दाग छुडाएं।
चच्चा घर पे जब आए ,मलिकाइन को दाग दिखाए।
चच्ची कहीं ई का किया ,देता हमका स्वर्ग पठाए।
दाग देख चच्ची चच्चा पर ,कठिन शब्द के बाण चलाएं।
चच्चा साँसत में पड़ गए कि ,पान चबाएं की दाग छुडाएं।
मन मे प्रण कर लिए चच्चा ,अब कबहुँ हम पान न खाइब।
गर पान भूले भटके से खाइब ,तब फिर ज्यादा न बतियाइब।
एक त कुरता साफ न होई ,ऊपर से के गारी खाए।
चच्चा साँसत में पड़ गए कि ,पान चबाएं की दाग छुडाएं।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी