पात-पात हम चले…
टूटे सपनों की सजाने, बारात हम चले
बरसों बाद करने खुदसे, मुलाकात हम चले…
जितने बढ़े फ़ासले, उतने ही करीब आ गए
छोड़कर वादें, गले लगाने जज़्बात हम चले…
आसमान में उड़कर, थक चुके अब
बसने की ज़मीं से माँगने, खैरात हम चले…
कुछ दें या ना दें, मोहब्बत का सिला चाहे
लुटाकर अपनी तो, कायनात हम चले…
बेशक हम न पाए, फ़ौकियत की मंजिल
मगर इंतजार में, सारा दिन सारी रात हम चले…
तेरी सोच चली प्यार में डाल- डाल
बनकर तेरी धड़कन, पात -पात हम चले…
-✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’