पात्र
एक तूझे रिझाने के खातिर, बने रहा पात्र,
जिंदगी भर अभिनय किया, केवल मात्र.
सुना है तू खाली नहीं रखता, प्रेम रूपी पात्र.
जहान् में फैलता है खुशबू की तरह प्रेम मात्र.
क्रोध को जीता सलिके से,देखते भर रहा मात्र.
ये सब मन के भाव विकार है, छूट चूके मित्र.
विश्वास किया,धोखे खाये, विश्वास जग जाए मात्र.
पहले भगवान मिट गया ,प्रकट जहां सब चरित्र.
सेवक बैठे बन विचार, पनपे जिससे सब सदाचार.
शनै शनै सब भेद खुले, प्रकट हुए सब व्यवहार.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस