*पाते असली शांति वह ,जिनके मन संतोष (कुंडलिया)*
पाते असली शांति वह ,जिनके मन संतोष (कुंडलिया)
पाते असली शांति वह ,जिनके मन संतोष
जिनको जो भी मिल गया ,उसमें तनिक न रोष
उसमें तनिक न रोष ,जिन्हें हरि-इच्छा प्यारी
भरा ईश-प्रणिधान , उसी में खुशियाँ सारी
कहते रवि कविराय ,सदा प्रभु के गुण गाते
उनके लिए प्रसाद ,अशुभ-शुभ जो भी पाते
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
नोट:- देखा जाए तो संतोष और ईश्वर-प्रणिधान एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । ईश्वर को परमपिता तथा सर्वोच्च शुभचिंतक मानते हुए वह जो हमें देता है अथवा नहीं देता है अथवा देने के बाद छीन लेता है ,सब परिस्थितियों में उसकी कोई सुंदर योजना मानते हुए संतुष्ट रहना -इसी को ईश्वर-प्रणिधान कह सकते हैं तथा इसी को जीवन में संतोष भाव भी कहा जा सकता है । योग-साधना में इस प्रवृत्ति का विशेष महत्व है।
■■■■■■■■■■■■■■■■■
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451