पाठ्यक्रम का स्तर संरक्षित करें हम
शिक्षा के निरंतर गिरते स्तर का एक प्रमुख कारण है-पाठ्यक्रम की निरर्थक चीड़फाड़।हिंदी से प्रसिद्ध कवियों,लेखकों की रचनाएँ धीरे धीरे गायब होती जा रही हैं।कबीर,रहीम,तुलसीदास,रसखान,हरिऔध,निराला,दिनकर,महादेवी,जयशंकर प्रसाद,सुमित्रानंदन पंत आदि पाठ्यक्रम राजनीति के शिकार हो गये हैं,परिणाम हमारे बच्चों से बहुत सारी चीजें दूर हो गयी हैं।ना तो नैतिक शिक्षा मिल पा रही है,ना ही चारित्रिक उन्नयन के साथ शिक्षा के उन्नत स्तर को बच्चे प्राप्त कर पा रहे हैं।अंग्रेज़ी की किताबों से वर्ड्सवर्थ,शेक्सपियर,मिल्टन,शेली,
ब्राउनिंग आदि कवि गायब हो गये हैं।ब्रिटिश पोएट्स को हटाकर कुछ अमेरिकन कवियों को स्थान दिया जा रहा है।
आखिर हम चाहते क्या हैं।शिक्षा के स्तर को क्या हम धराशायी कर देना चाहते हैं।
विद्वतजनों के बीच अपनी किताबों को,अपनी रचनाओं को पाठ्यक्रम में शामिल करवाने की होड़ मची है।सभी चाहते हैं कि उनकी किताबें,उनकी रचनाएँ पाठ्यक्रम में शामिल हो जाएं।सभी अपने आपको शिक्षार्थियों से पढ़वाना चाहते हैं,आत्मसंतुष्टि मिलेगी,आखिर हमने कुछ किया लोग हमारा परिचय पढ़ रहे हैं-बड़े गर्व की बात है।
तुलसीदास जी ने,कबीरदास जी ने,रहीम ने पाठ्यक्रम में शामिल करवाने के लिए रचनाओं का प्रणयन नहीं किया था।संबंधित पाठ्यक्रम समिति को पैरवी भी नहीं की थी,आज भी इनकी कोई पैरवी नहीं है,अतः धीरे धीरे पाठ्यक्रम से विलुप्त होते जा रहे हैं।
आजकल के अधिकतर बच्चे इन महाकवियों के बारे में जानते भी नहीं,दुर्भाग्य हमारा है,इन महाकवियों का नहीं।ये तो सदा स्मरणीय एवं कालजयी बने रहेंगे।
पाठ्यक्रम की निरंतर चीड़फाड़, उन्हें बहुत ही ज्यादा आसान बना दिया जाना बच्चों को परीक्षा तो पास करा देगा लेकिन वो शिक्षित नहीं हो पाएँगे, प्रखरता की कमी होगी और मुकाबला जब विश्व स्तर पर हो तो आनेवाले समय मे हमारे बच्चे पीछे छूटते जाएँगे।
आत्ममंथन के इस काल में हम निजी एवं व्यक्तिगत लाभ हेतु पाठ्यक्रम की चीड़फाड़ न करें वरन अपने देश को शिक्षा के शीर्ष स्तर तक पहुँचाएँ ताकि विश्व हमारे देश पर गर्व करे, हमारी शिक्षा पर हमारे पाठ्यक्रम पर गर्व करे और हम अपनी शिक्षा से पूरे विश्व को आलोकित करते रहें।
-अनिल कुमार मिश्र