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5 Jul 2022 · 1 min read

पागल है

ग़ज़ल
22 22 22

दिल कितना पागल है
रहता बस घायल है

आसार नहीं कुछ फिर
काला क्यों बादल है

उसको देखा जब से
लगता वह रायल है

आटा अब खत्म हुआ
घर में बस चावल है

यादों का उसके यूँ
बजता अब साँकल है

आकाश में उड़ता था
धरती पर घायल है

पीने को जी चाहे
सुन्दर यह बाटल है

अब हर कोई कितना
पैसे पे पागल है

डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
वाराणसी
4/7/2022

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 266 Views
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