पाँव धरने की इजाजत दो
शमां से बोला परवाना कि मरने की इजाजत दो
नहीं तो मुस्कुराकर बात करने की इजाजत दो
हृदय उपवन तुम्हारा खींचता है रूह को मेरी
सुकोमल इस धरा पर पाँव धरने की इजाजत दो
ये आईना बता देगा मुझे मेरी हकीकत को
जरा कुछ देर मुझको भी संवरने की इजाजत दो
मुझे तो जीतना ही है मगर है इल्तिजा इतनी
मुझे इस जंग में हँसकर उतरने की इजाजत दो
बहारें बाँध ग़र आँचल में अपने ले चली हो तुम
तो फूलों को भी उपवन में बिखरने की इजाजत दो
चले आए हो कितने शौक से तुम ख्वाब में मेरे
कभी अपनी गली से भी गुजरने की इजाजत दो
जिसे पीतल समझकर रो रहे हो बेवजह ‘संजय’
वो कुंदन है उसे तपकर निखरने की इजाजत दो