पहाड़ में गर्मी नहीं लगती घाम बहुत लगता है।
पहाड़ में गर्मी नहीं लगती
घाम बहुत लगता है…
शुद्ध हवा के सरस्याट से गाल लाल हो जाते हैं
हालांकि काम-धाम
घास पाणी और पसीना मुख्य कारण समझो
मैंने पहाड़ को बेहद शालीनता से जिया
कई भार घास ढोए
कई मर्तबा हल जोता
कई बार लकड़ियां सारी
कार्तिक-मगसीर के दरमियाँ इधर..
पूजा, शादी, बाण-मसाण यहाँ के मुख्य त्योहार ठैरे..
अब घर-घर में रोड़ आ गई
ये बात सभी को मालूम है।
पहाड़ बचाने के लिए देरादून में कई समितियां/संगठन बना रख्खी है..
पहाड़ जबकि सारा का सारा बचा हुआ ही तो है?
बचे नहीं तो केवल लोग
बचे नहीं तो केवल कुछ लोग
बचे नहीं तो थोड़ा ज्यादा पैसे वाले लोग
पहाड़ …पहाड़.. पहाड़ की एक अच्छी आदत है
वो किसी को कभी-भी बुला सकता है पास अपने
छोड़ चुके जो खानदानी इमारत को
छोड़ चुके जो बांज पड़े खेतो को
छोड़ चुके जो पुराने पगडंडियों को
छोड़ चुके जो इबादतखानो को
छोड़ चुके जो तमाम स्रोतों को
आदि आदि….
पहाड़ बेरंग कभी नहीं हुआ; करने पर तुले हुवे हैं हम
पेड़ अब पहले से ज्यादा हो गए
घास-फूस पहले से ज्यादा उग आई
हरियाली इतनी की पूछो मत..
हवा की शुद्धता भी पहले से बेहतर है
पहाड़ आना बड़ी बात नहीं; पैदाइशी पहाड़ी होना फ़क्र की बात है..
फ़क्र भावनाओ का
फ़क्र इंसानियत का
फ़क्र मानवता का
फ़क्र रियायत का
फ़क्र दयाशील का
फ़क्र रहमत का
आदि आदि…..
✒️Brijpal Singh