पहले संभलता था दिल अब संभलता नही है.
पहले संभलता था दिल अब संभलता नही है.
निकलने को था दम मेरा, पर निकलता नही है.
तेरे दिये गमों को बता कहां रखूं संभाल कर.
दर्द ऐ जिगर का ये सूरज भी तो ढलता नही है.
बेचैन रहती है हर वक्त तेरी दीद को मेरे ये नजर.
ना जाने क्यों तेरा ये पत्थर दिल पिघलता नही है.
करते बातें हम भी उन चांद तारों की गवाही में.
अफसोस अब चांद भी छत पर निकलता नही है.
आकर देख मेरे बिस्तर की इन सलवटों को दीप.
मेरा अब इस ज़िन्दगी पर भी जोर चलता नही है.
✍️✍️…दीप